पृथ्वी गायत्री मंत्र न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए, बल्कि प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का भी एक श्रेष्ठ साधन है। पृथ्वी, जो हमें जीवन देती है, हमारा पोषण करती है और हमें अपने आँचल में सुरक्षित रखती है, हिंदू संस्कृति में देवी के रूप में पूजनीय है। ऋग्वेद और अन्य प्राचीन ग्रंथों में इस मंत्र की महिमा का उल्लेख मिलता है।
Prithvi Gayatri Mantra का जाप करने से व्यक्ति की आंतरिक शक्ति जागृत होती है और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है। यह मंत्र हमें प्रकृति के प्रति श्रद्धा, कृतज्ञता और संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देता है। इसे जपने से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि यह हमें स्थिरता और आत्मिक ऊर्जा भी प्रदान करता है। यह मंत्र कुछ इस प्रकार है—
Prithvi Gayatri Mantra
ॐ पृथ्वीदेव्यै विद्महे सहस्रमूर्तयै धीमहि तन्नो पृथ्वी: प्रचोदयात्।
अर्थ – हे माता पृथ्वी! आपको सादर प्रणाम। आप ही हमारे जीवन का आधार हैं, हमारा पालन-पोषण करती हैं और हमें धैर्य व स्थिरता का आशीर्वाद देती हैं। कृपया अपने दिव्य आशीर्वाद से हमें शक्ति प्रदान करें और सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दें।
यह मंत्र जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव लाने में सक्षम है—चाहे वह मानसिक हो, शारीरिक हो या आध्यात्मिक। इसके साथ आप अन्य मंत्रों जैसे- भूमि गायत्री मंत्र, अग्नि गायत्री मंत्र और वायु गायत्री मंत्र का जाप भी कर सकते है। इन मंत्रों का जाप करके आप उन तत्वों की शक्ति का सृजन करते है जो आपके जीवन का आधार है।
पृथ्वी गायत्री मंत्र की जप विधि
यदि इसे सही विधि और भावना से करना चाहिए, ताकि यह जीवन में स्थिरता, समृद्धि और सुख-शांति लाने में सहायक हो। यहां जाप की एक सामन्य विधि बताई गई है जिसे अपनाकर आप मंत्र का जाप कर सकते है। विधि इस प्रकार से है-
- स्नान: इस मंत्र का जप करने से पहले शरीर और मन की शुद्धि आवश्यक है। सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। शुद्ध और शांत मन से जप करने से इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
- स्थान का चयन: मंत्र का जप किसी शांत, स्वच्छ और पवित्र स्थान पर बैठकर करें। पीले या सफेद वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।
- आसान: जाप के समय कुशासन, चटाई या ऊनी आसन का प्रयोग करें ताकि ऊर्जा का संतुलन बना रहे। यदि संभव हो तो धरती पर बैठकर जप करें, क्योंकि यह मंत्र स्वयं पृथ्वी माता को समर्पित है।
- संकल्प: जप शुरू करने से पहले संकल्प लें कि यह साधना केवल आध्यात्मिक उन्नति, शांति और प्रकृति के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए की जा रही है। आंखें बंद करें, कुछ क्षण गहरी श्वास लें और मन को एकाग्र करें।
- मंत्र जप: मंत्र का उच्चारण शुद्धता और श्रद्धा के साथ करें। इसे धीमे स्वर में, मन ही मन या मध्यम आवाज में जपा जा सकता है। कम से कम 11 या 21 बार और यदि संभव हो तो 108 बार जप करें। रुद्राक्ष या तुलसी की माला का प्रयोग कर सकते हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है श्रद्धा और एकाग्रता।
- भावना: मंत्र जप के दौरान पृथ्वी माता की दिव्य छवि मन में रखें। उन्हें सहनशीलता, धैर्य और प्रेम का प्रतीक मानकर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें। इस दौरान धरती पर बैठने का अनुभव लें और उसके ऊर्जा प्रवाह को महसूस करें।
- कृतज्ञता: जप समाप्त होने के बाद आंखें बंद करके कुछ क्षण शांत बैठें। मां पृथ्वी का आभार प्रकट करें और उनसे प्रार्थना करें कि वे हमें सहनशीलता, संतुलन और स्थिरता प्रदान करें। अंत में हाथ जोड़कर प्रणाम करें और आशीर्वाद प्राप्त करें।
इस विधि से किया गया जप न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि पृथ्वी के प्रति हमारी जिम्मेदारी और प्रेम को भी जागृत करता है।
इस गायत्री मंत्र के लाभ
इसके निरंतर जाप से व्यक्ति आध्यात्मिक शक्ति, मानसिक स्पष्टता और आंतरिक शांति प्राप्त कर सकता है। कुछ कुछ महत्वूर्ण लाभ निम्नलिखित है –
- पृथ्वी तत्व : यह मंत्र हमें प्रकृति और विशेष रूप से पृथ्वी तत्व से जोड़ता है। इससे हमारी जड़ें मजबूत होती हैं, जीवन में स्थिरता आती है और हम अपने अस्तित्व की गहराइयों को महसूस कर पाते हैं।
- शांति और स्थिरता: यह मंत्र हमारे मन को स्थिरता और शांति प्रदान करता है। इसके नियमित जप से मानसिक अशांति, तनाव और व्याकुलता कम होती है, जिससे व्यक्ति अधिक धैर्यवान और संतुलित बनता है।
- सहनशीलता: पृथ्वी माता असीम सहनशीलता और धैर्य का प्रतीक हैं। इस मंत्र के जप से हमारे भीतर भी सहनशीलता, विनम्रता और कठिन परिस्थितियों को धैर्यपूर्वक स्वीकार करने की शक्ति आती है।
- जागरूकता: जब हम पृथ्वी माता की महिमा को समझते हैं और उनकी स्तुति करते हैं, तो हमारे भीतर प्रकृति के प्रति प्रेम और जिम्मेदारी का भाव जागृत होता है। यह मंत्र हमें पर्यावरण संरक्षण और धरती के प्रति संवेदनशील बनने की प्रेरणा देता है।
- नकारात्मक ऊर्जा: यह मंत्र हमारी आभा (Aura) को शुद्ध और सकारात्मक बनाता है। इसे जपने से नकारात्मक ऊर्जा, भय, अस्थिरता और मानसिक उलझनों से मुक्ति मिलती है, जिससे व्यक्ति अधिक सकारात्मक और ऊर्जावान महसूस करता है।
- शारीरिक संतुलन: इस मंत्र का नियमित जाप शरीर की ऊर्जा को संतुलित करता है। यह व्यक्ति में स्थिरता, संतुलित सोच और गहरी आत्मिक शांति लाने में सहायक होता है।
- कर्मों में स्थिरता: जिन लोगों का मन विचलित रहता है या निर्णय लेने में कठिनाई होती है, उनके लिए यह मंत्र विशेष रूप से लाभकारी है। यह हमें निर्णय लेने की स्पष्टता, जीवन में संतुलन और कार्यों में सफलता प्राप्त करने की शक्ति प्रदान करता है।
इस मंत्र का जप केवल आध्यात्मिक लाभ ही नहीं देता, बल्कि यह हमें एक बेहतर इंसान बनने और पृथ्वी के साथ संतुलन स्थापित करने की ओर प्रेरित करता है।
FAQ
क्या इस मंत्र का जप करने से कोई विशेष लाभ मिलता है?
हाँ, इस मंत्र का जप करने से मानसिक शांति, धैर्य, आत्मिक स्थिरता, नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा, निर्णय लेने की क्षमता और पृथ्वी तत्व से गहरा जुड़ाव प्राप्त होता है।
क्या यह मंत्र पर्यावरण और प्रकृति से जुड़ा है?
बिल्कुल! यह मंत्र हमें पृथ्वी माता की महिमा को समझने और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने की प्रेरणा देता है।
क्या इस मंत्र का जप किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है?
हाँ, कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या पृष्ठभूमि से हो, इस मंत्र का जप कर सकता है। इसे जपने के लिए केवल श्रद्धा और समर्पण की आवश्यकता होती है।
इस मंत्र का जप करने का सही समय कौन सा है?
सुबह ब्रह्ममुहूर्त (4:00 से 6:00 बजे) या संध्या समय (शाम 6:00 से 8:00 बजे) इस मंत्र के जप के लिए सबसे उत्तम माने जाते हैं। हालाँकि, इसे किसी भी समय श्रद्धा से जपा जा सकता है।

मैं मां दुर्गा की आराधना और पूजा-पाठ में गहरी रुचि रखती हूँ। गायत्री मंत्र का रोजाना जाप करती हूँ। मां दुर्गा से संबंधित मंत्र, आरती, चालीसा और अन्य धार्मिक सामग्री साझा करती हूँ। मेरा उद्देश्य भक्तों को सही पूजा विधि सिखाना और आध्यात्मिक मार्ग पर प्रेरित करना है।